नवीन अपने पिताजी के साथ जंगल में बनी झोपड़ी पर रहता था। नवीन और नवीन का पिताजी जंगल से लकड़ी इकठ्ठा करके शहर में बेच देते। उनके पास कुछ खेती की जमीन थी, जहां पर वे दोनों फल सब्जियां और अनाज उगाते थे। एक दिन नवीन अपने रोज के काम से तंग आ गया और अपने पिता जी से कहा पिता जी अब मैं ये काम और अधिक नहीं कर सकता। इस काम में इतनी मेहनत करने के बाबजूद भी सिर्फ दो वक्त की रोटी ही नसीब होती है। नवीन अंदर से घुट रहा था ना जानें कितने दिनों से नवीन अपने पिताजी को यह बात बताना चाहता था।
नवीन का बचपन ना सुख सुविधाओं में बीता ना नवीन के मन में आजतक जीवन में कुछ बड़ा करने की कौतूहल थी। नवीन शारीरिक और मानसिक रूप से सादा जीवन जी रहा था। लेकिन आज ना जाने नवीन को क्या हो गया। पिताजी से बात करते ही बीच में नवीन जंगल में झल्लाते हुए पेड़ पौधों से बात करने लगा। नवीन ने उगते हुए छोटे पौधे से कहा अब मैं भी तेरी तरह दुनियां को अपने नजरिए से देखूंगा। जिस तरह तू बड़ा हो रहा है उसी तरह मेरे सपने भी अभी अभी उग रहे हैं। मैंने अभी अभी कुछ ऐसा पा लिया जिसे पाने के लिए अनेक बुद्धिमान व्यक्ति प्रयास कर रहे हैं। मैं अब अपने विचारों से दुनियां में एक नई क्रांति ला दूंगा। जिस तरह एक छोटा पौधा बड़ा पेड़ बनकर लोगों को अनेक चीजें प्रदान करता है। उसी तरह मेरे विचार दुनिया को नई दिशा प्रदान करेंगे।
नवीन के पिताजी ने नवीन की हालत देख कर भयभीत हो गया। वह मन ही मन में अपने जंगल के देवता से प्रार्थना करने लगा। नवीन के पिताजी ने कांपते प्राणों से कहा हे! जंगल के देवता ये कैसा अन्याय हो गया लगता है नवीन पर शैतान का दांव लग गया।
नवीन के पिताजी ने कहा बेटा क्या हो गया तुझे तू ये सब काम छोड़कर कुछ दिन आराम कर ले। लेकिन अपनी आत्मा का सौदा शैतान के साथ मत कर। तू तत्क्षण जंगल के देवता से माफी मांग और अपने नए विचारों को छोड़कर जंगल के देवता के शरण में आ जा। वो बहुत दयालु हैं, वो तूझे माफ करके तुझे बहुत सारी सुख सुविधाओं भरा जीवन देंगे। क्या तू पास के गांव में रहने वाले रवीश को भूल गया जिसने जंगल के देवता को प्रसन्न किया, आज वह सुख सुविधाओं से भरा जीवन जी रहा है।
नवीन ने कहा- पिताजी आप बुरी घटनाओं से भयभीत मत होइए। कोई शैतान और भगवान नहीं है। हम खुद अपने वर्तमान और भविष्य के निर्माता है। नवीन का पिताजी नवीन को ना समझ सका।
नवीन जंगल और अपने पिताजी को छोड़कर शहर की ओर चल पड़ा। सभी लोग आज नवीन को अचंभित हो कर देख रहे थे। नवीन के पास कोई बोझा ना देखकर आसपास के लोग भी नवीन के भविष्य को लेकर भयभीत हो गए। लोग सोचने लगे की हमेशा तो यह बोझा लेकर शहर जाता था। आज नवीन की दिनचर्या में इतना बड़ा बदलाव कैसे हो गया। आज नवीन का बोझा ना देखकर लोग ईर्ष्या से भर गए।
लोग आपस में बातें करने लगे देखो आज कैसे साहब बनकर चल रहा है। कुछ ही दिनों में बाप बेटे की हेकड़ी निकल जायेगी। जब खाने और पीने के लिए कुछ नहीं मिलेगा। तो यही निम्न कोटि के लोग भीख मांगने के लिए आ जाते हैं। आखिर इन नीच लोगों को तो जीवन भर परिश्रम ही करना चाहिए।
नवीन शहर पहुंच कर लोगों को ज्ञान देने लग गया। मैं तुम्हें सदी का महामानव बनाने की शिक्षा दे रहा हूं। मेरी शिक्षा से तुम काल्पनिक दुनिया को छोड़कर वास्तविकता में महामानव बन जाओगे। लकड़हारे की अजीब बाते सुन कर सभी लोग उसका उपहास करने लगे। लोगों ने कहा अरे लकड़हारे क्यों खुद को बादशाह समझ रहे हो। क्या तुम सिर्फ बड़ी बडी बाते करते हो? या फिर तुमने कुछ जादू सिख लिया है। ऐसा है, तो फिर कुछ अपना जादू दिखाओ।
लकड़हारा लोगों के वचन सुन कर थोडी देर चुप रहा और फिर लोगों द्वारा भ्रमित की गई बुद्धि से विचार करके बोला। मैं कोई जादूगर नहीं मैंने सत्य को पा लिया है और अब मैं इस सत्य को तुम्हें बांटना चाहता हूं।
लोग लकड़हारे की बातों को सुनकर हैरान हो गए कि आखिर जंगल का देवता नवीन पर इतने जल्दी खुश कैसे हो गया। भीड़ में से एक लड़के पर जंगल का देवता प्रकट हो गया। सारी भीड़ ने नवीन को पागल समझा और जंगल के देवता से प्रार्थना करने लगे।
नवीन भीड़ को छोड़कर आगे शहर में पहुंच गया। नवीन को भूख लग रही थी, लेकिन खाना खाने के लिए पैसे भी नहीं थे।
नवीन को एक बूढ़ा भिखारी मिला। जिसने नवीन को भीख मांगने की कला सिखाई। नवीन, बूढ़े भिखारी से सत्य ज्ञान की बाते करता। भिखारी बहुत बूढ़ा हो गया था इसलिए नवीन की बात का कोई विरोध नहीं करता था। एक दिन बूढ़े व्यक्ति की मौत हो गई। नवीन दुखी हुआ की अब कोई नवीन के बोध को आत्मसात नहीं करना चाहता है। एक वही भीखारी दोस्त था। जो नवीन की बाते समझता था लेकिन वह भी आज मर गया।
नवीन अब सड़क किनारे ही पड़ा रहता और लोगों को चिला चिलाकर अपने पास बुलाता और उन्हें अपने आत्म बोध की बात बताता। कोई नवीन के इस व्यवहार पर ध्यान नहीं देता और लोग देवता से प्रार्थना करते हैं की नवीन को सद्बुद्धि मिले।
- शशि प्रेम
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